संदर्भ-प्रसंग विचार- मत बनाइए कोविड-19 वैक्सीन को सियासत का हथियार

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मत बनाइए कोविड-19 वैक्सीन को सियासत का हथियार
मत बनाइए कोविड-19 वैक्सीन को सियासत का हथियार

अनुराग शुक्ला

भारत में 34 करोड़ से ज्यादा लोगों को कोरोना टीके की कम से कम एक खुराक लग चुकी है और देश के 5 करोड़ से ज्यादा लोगों को टीके की दोनों खुराक लग चुकी है। कम से कम एक खुराक के मामले में भारत पूरी दुनिया में सबसे आगे यानी पहले है। अमरीका दूसरे नंबर पर है।

35 करोड़ के इस आंकडे को अगर एक आबादी माना जाय तो इस लिहाज से ये दुनिया का चौथा देश है। यानी अगर आसान शब्दों में कहा जाय तो जितने लोगों को देश में वैक्सीन की कम से कम एक डोज लग चुकी है वो दुनिया 3 देशों की जनसंख्या के बाद सबसे बड़ी आबादी है। ये संख्या रुस, जर्मनी, स्पेन की जनसंख्या से ज्यादा है। ये पूरे खाड़ी देशों की जनसंख्या से कहीं ज्यादा है। देश में 5 करोड़ लोगों को वैक्सीन की दोनों डोज़ लग चुकी है जो संख्या के लिहाज से इतनी है कि दुनिया के करीब दो सौ देशों की आबादी इससे कम है। फिर भी देश में टीके की उपलब्धता को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं।

कोरोना महामारी कुछ लोगों के लिए यह आपदा में अवसर की तरह भी उभरी है। वैसे तो आपदा में अवसर शब्द देश के प्रधानमंत्री ने किसी और संदर्भ में बोले थे पर उनके विरोधियों ने इसे अक्षरशः अपनाकर राजनीतिक फायदे का हथियार बना लिया है। आज स्थिति ये है कि देश में कोरोना के खिलाफ वैक्सीनेशन को लेकर विरोधियों और उनके साथी संगियों ने ऐसा माहौल बनाने की कोशिश की है कि देश में कोरोना टीकाकरण रेंग रहा है।

ये वही विरोधी और उनके संगी साथी है जिनकी सत्ता में किसी भी बीमारी के टीका हासिल करने में दशकों लग जाते थे। ये वही विरोधी हैं जो टीकाकरण के शुरु होते ही  वैक्सीन के खिलाफ माहौल बनाने में लग गये हैं। अब देश की जनता को ये बताना और जताना चाहते हैं कि देश में टीकाकरण की गति थम सी गयी है, रुक सी गयी है।

भारत के टीकाकरण में कई चुनौतियां हैं। जिस देश की आबादी 137 करोड़ लोग हों, घाटी, समुद्र, पहाड़ जैसी भौगोलिक विषमताएं हों, आबादी के एक वर्ग को टीका लगवाने के लिए तैयार करना हो वहां कुछ चुनौतियां होना प्रक्रिया का हिस्सा है।

दुनिया के सबसे विकसित समझे जाने वाले देश भी कई चुनौतियों से दो-दो हाथ कर रहे हैं। जर्मनी में अभी सिर्फ 4 करोड़ लोगों को एक डोज लग चुकी है। वहां पर टीकाकरण के लिए कई बार नियम भी बदले गए हैं। प्राइयोरिटी लिमिट्स को बदला गया और पिछले 7 जून को नए सिरे से बदले नियम लागू किए गए।

टीके की उपलब्धता को सुनिश्चित करने के लिए उम्र, बीमारियों की स्थिति, पेशे जैसी कई बंदिशें लगाई गयी हैं। जबकि भारत में वहां से पांच गुना से ज्यादा टीके लग चुके हैं। जर्मनी में भी टीके की कमी की समस्या है, वहां की सरकार भी इसी समस्या से निपटने में जुटी है।

अगर बात जापान की करें तो उनके टीकाकरण को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। हेल्थ वर्कर्स के लिए टीकाकरण के चरण में देरी ने सरकार की फजीहत कराई। जापान में जुलाई के तीसरे हफ्ते में ओलंपिक होने हैं और वहां  करीब 50 प्रतिशत चिकित्साकर्मियों को अभी वैक्सीन ही नहीं लग सकी है। इसके अलावा वृद्ध जनसंख्या के लिए चलाए गये चरण में लाल फीताशाही लोगों के निशाने पर रही।

टीकाकरण के बीच ही जापान का दूसरा सबसे बड़ा शहर ओसाका इन दिनों कोरोना महामारी से जूझ रहा है। वहां पर भी बेड, वेंटीलेटर्स की कमी है। सिर्फ 13 प्रतिशत बीमारों को ही अस्पताल की सुविधा मिल सकी है। डाक्टरों की कमी और लगातार काम करने से डाक्टरों पर दबाव बहुत बढ़ गया है। जापान के इस पश्चिम इलाके में कोरोना ने तांडव मचा रखा है। हालात ये है कि इस मई माह में हुई मौतों की संख्या महामारी में जापान की कुल मृत्यु की एक तिहाई हो गयी है।

हताशावादियों की कोशिश ऐसा माहौल बनाने की है कि देश में टीके उपलब्ध ही नहीं हैं। जबकि सच्चाई इससे कोसों दूर है। हताशावादी ये नहीं बता रहे कि देश के राज्यों में कितनी वैक्सीन राज्य सरकारों की लापरवाही से बर्बाद हो रही है। वैक्सीन के बर्बाद होने के राष्ट्रीय औसत इस समय 6.3 प्रतिशत है।

केंद्र सरकार तो सिर्फ वैक्सीन मुहैया करा सकती है, इसके उपोयग की जिम्मेदारी तो राज्य सरकारों की है। आज की परिस्थिति में वैक्सीन की बर्बादी एक गुनाह से कम नहीं है। खुद देश के प्रधानमंत्री कह चुके हैं कि एक वैक्सीन की बर्बादी भी मानव जीवन के लिए खतरनाक है।

वैक्सीन की बर्बादी को कम करना तो दूर आज की स्थिति है कि झारखंड में 37.3 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 30.2 प्रतिशत, तमिलनाडु में 15.5 प्रतिशत, जम्मू कश्मीर में 10.8 प्रतिशत और मध्य प्रदेश में 10.7 प्रतिशत वैक्सीन बर्बाद हो रही है। यानी एक तरफ बर्बादी और दूसरी तरफ वैक्सीन का नुकसान। ये देश को दोहरा नुकसान पहुंचा रहा है।

हताशावादी हाय-तौबा मचाने की जगह जिम्मेदारी निभाते हुए इस नुकसान को ही कम कर लें तो देश में लाखों लोगों को वैकसीन की ड़ोज मिल जाएगी। पर उन्हें तो विरोध करना है, वैचारिक उन्माद फैलाना है।

ब्रिटेन जहां 2 करोड़ लोगों को दोनों डोज देने के बाद अपने टीकाकरण को सफल बता रहा है वहीं भारत में चार करोड़ लोगों को टीके की दोनों डोज दिए जाने के बाद भी निराशा का माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है।

आज सोच इस तरह की बन गयी है कि हमने अगर आज वैक्सीन के लिए रजिस्टर कराया तो तुरंत ही हमें टीका लग जाय। इन सारी चुनौतियों के साथ ही सरकार की तैयारी है कि इस वर्ष अगस्‍त से दिसंबर माह तक वैक्‍सीन की 200 करोड़ से अधिक यानी करीब 216 करोड़ डोज देश में उपलब्ध हो सके। इस ब्लू प्रिंट के हिसाब से इस संख्या में 75 करोड़  सीरम इंस्‍टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा बनाई जा रही ऐस्ट्राजेनेका की वैक्‍सीन  यानी कोविशील्‍ड, भारत बायोटेक और आईसीएमआर की कोवैक्‍सीन के करीब 55 करोड़ डोज शामिल है। इसके अलावा जुलाई 2021 में रूस की वैक्सीन स्‍पूतनिक-वी की अनुमानित 15.6 करोड़ खुराक उपलब्ध होगी। सरकार की कोशिश यह भी है कि 216 करोड़ वैक्सीन के इस टारगेट के बाद साल 2022 के पहले क्‍वार्टर में वैक्सीन की यह संख्‍या 300 करोड़ तक पहुंच सके। इस ब्लू प्रिंट के हिसाब से काम हुआ तो आने वाले महीनों से स्थिति में तेजी से सुधार होगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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